AK-008 बेटी की फरियाद
21st Feb. 2018
एक आवाज़ आज दुःखद चीख़ बनी
करुण दर्द भरी सिसकियाँ अश्रु बनी
एक पुकार हर तरफ हाहाकार बनी
मुझे कोख़ में ना मारना मेरी मैया...
कोख में मत मारना
तेरी दुआओं का रब का दिया प्रसाद हूं मैं
बेटे की अरदास मैं रब ने बक्शा है मुझे
सर झुका प्रसाद मैं स्वीकार कर मां मुझे
शुक्रिया कर झोली मैं अपनी स्वीकार ले मुझे
मुझे कोख़ में ना मारना मेरी मैया...
कोख में मत मारना
बड़ी कर्मों वाली होती हैं बेटियां
हां घर की रौनक होती हैं बेटियां
इस लोक में मोक्ष का साधन हैं बेटियां
बेटी का दान सब से श्रेष्ठ है ये है विधान
मुझे कोख़ में ना मारना मेरी मैया...
कोख में मत मारना
हाँ गर मजबूर थी तो किसी पंगुडे मैं छोड़ आती
वहाँ पाल लेते हैं वो बेटियां
बेटी ह्त्या के बोझ और रब के प्रकोप से बचती दुआएँ देतीं तुम्हें सब बेटियां
मुझे कोख़ में ना मारना मेरी मैया...
कोख में मत मारना
तूँ भी तो बेटी थी किसी की सोच ज़रा
गर बीतती तुझ पर सब यही सोच ज़रा
तू दुनिया में कैसे आती हृदय से सोच ज़रा
मुझे भी तो जीने का है हक सोच ज़रा
मुझे कोख़ में ना मारना मेरी मैया...
कोख में मत मारना
मुझे दुनिया में आने दे आगे तक़दीर है मेरी
क्या पता मैं बनूँ रानी लक्ष्मी तक़दीर है मेरी
मैं बनती सान्या मिर्ज़ा या कल्पना चावला
या बन जाती कोई टरेसा तक़दीर थी मेरी
रिश्ते निभाती, ख़ुशियाँ बरसाती हाय्ये माँ मेरी
तुम तो ना छीनना मुझसे मेरे जीने का हक़
मुझे कोख़ में ना मारना मेरी मैया...
कोख में मत मारना
Poet Ashok( (Azad Panchi)