Wednesday, 14 November 2018

Kehti Hai Kalam AK-017 14th November 2018



कहती है कलम 
AK-017 14th November 2018

बुझा-बुझा सा चेहरा लिए तू क्यों आ गया महफ़िल में |
झुलसा रहा तू क्यों सबको अपनी साँसों की गर्मी में ||

सोच रहा तू क्या यूँ अपना मुँह लटकाए |
चट्टानों में नदी अपनी राह स्वयं बनाए ||

मंज़िल की ओर कदम बढ़ा तू सबकुछ प्यारे भूल |
बन वीर कर द्रढ़ संकल्प स्थिति हो चाहे प्रतिकूल ||

कर्म कर तू कर्म कर मौत को अपनी टाल कर |
बन पतंगा मिट जा न जान की तू परवाह कर ||

बेसब्र नादान तू है चार दिन की जिंदगानी यह |
हँसता चल हँसाता चल आनंद-सरिता बन तू बह ||

कहती है यह कलम रुकना मत तू थकना मत तू |
काँटों पर चल कर भी आह तक करना मत तू ||

अपना लक्ष्य, अपनी साधना अधूरी मत छोड़ना तू।
कर्म ही है ‘पूजा’ बस यह बात गाँठ बाँध लेना तू।।

---- पूजा

Thursday, 1 November 2018

मेघयात्री AK-016 1st November 2018




मेघयात्री
AK-016 1st November 2018

रुखी यात्राओं पर निकल रहे हम स्वयं-
पुरवाई हमें मत ढकेलो,
हम प्यासे बादल हैं, इसी व्योम-मंडप के
दे दो ठंडी झकोर
और दाह ले लो।

क्या जाने कब फिर यह बरसाती सांझ मिले,
गठरी में बांध दो फुहारें-
पता नहीं कण्ठ कहां रुंध जाए भीड में,
जेबों में डाल दो मल्हारें,
स्वयं छोड देंगे हम, गुंजित नभ मंच ये-
दे दो एकांत जरा
वाह-वाह ले लो।

हट कर हरियाली से दूर चले जाएंगे-
दूर किसी अनजाने देश में,
जहाँ छूट जाएंगे नीले आकाश कई-
होंगे हम मटमैले वेश में,
मन से तो पूछो, आवेश में न आओ तुम-
दे दो सीमंत गंध
जल-प्रवाह ले लो।

घूम रहे तेज़ समय के पहिए देखो तो-
व्यक्ति और मौसम की बात क्या,
पानी में चली गई वय की यह गेंद तो-
वह भी फिर आएगी हाथ क्या
करो नहीं झूठा प्रतिरोध मत्स्य गंधा! तुम,
होना जो शेष अभी
वह गुनाह ले लो।


जम्हूरीअत AK-019 20th May 2019 ik

जम्हूरीअत AK-019 20th May 2019 जम्हूरियत का नशा इस कदर हावी हुआ हर सख्स इंसानियत भूलकर हैवानी हुआ इस दौर मैं क्या होगा आगे मत पूछ म...