Saturday, 27 January 2018

AK-007 जल रहा है देश मेरा 27th Jan. 2018



                    जल रहा है देश मेरा 

भव्य सामारोह गणतंत्र  दिवस देश का गौरव
उनहत्तर वर्षों की याद सैकड़ों शहीदों को नमन
याद किया शहीदों के जज्बे को, सलाम सब देशवासियों का माओं को जिन्हों ने जन्म दिया

सपूतों को हंसते हंसते कुर्बान किया बहनों बीबियों ने, खोया दुध पीते अबोध बच्चों ने
भारतीयों को नमन संविधान की रक्षा कर
गौरव देश का बढ़ाया कैसे भूलें हम सारे

उनहत्तर वर्ष बाद भी भारत जल रहा है
विश्व को अपनी नासमझी की मिसाल दे
उत्पात देश मैं व्याप्त कर कौन सी श्रधांजलि
निकृष्ट संकीर्ण सोच का प्रदर्शन दे रहा है

देश हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई भाई भाई
भूल गए हां भूल गए हम सब
देश की संपत्ति का विनाश हो रहा रोज
सोचो क्या यह गणतंत्र है

फिर विचार करना होगा अपने वजुद का
अपने संविधान अपनी ज़िमेदारिओं का
शर्म से झुका शीश देख रहा हर शाहिद
नम आंखों से भारत की दशा निहारता

सोच रहा था क्या हुआ ये आक्रोश कैसा
भारत माँ के सपूतों की कुर्बानी का हश्र
जश्न गणतंत्र दिवस का एक खोखला सा
छोड़ रहा वक्त अपनी अमिट छाप जैसे

समय है सोचने का विचार करो तुम
क्या खोया क्या पाया इन उनहत्तर वर्षों में

केहता है आज़ाद पंछी ना करो शर्मसार
शहीदों को अपने, याद करो उन्हें दे कर
सच्ची श्रद्धांजलि छोड़ सब बैर रहें हम
बन सच्चे अर्थों में भारतवासी।

Poet Ashok (Azad Panchi)

Sunday, 21 January 2018

AK-006 सैलाब 22nd Jan. 2018


जंगल में वरिक्षओं के झुंड को निहारा
बरसों से जुड़ी आपस में ऐक जुट हुई
सुदृढ़ मजबूत जड़ों को एक जुट लिपटी
मानो अपनी एकता का प्रतीक चिन्ह

लताएं आपस में गुथम गुत्था सिमटी हुई
बिछुड़ने के एह्सास के डर से लिपटी हुई
एक आपसी प्यार से मानो आलिंगित
अप्रतिम प्यार को दर्शाती संदेश दिया संसार को

ठंडी बयार का हल्का झोंका
शीतलता का एह्सास मनमोहित सा
वक़्त की गति अपनी रफ्तार से बढ़ रही
लुभावना शांत वातावरण शांति शांति

अचानक बयार की गति तेज हुई
पेड़ों की तेज़ आवाज़ आपस में टकराना
मानो साथ खड़ा पेड़ कोई दुश्मन हो
नये पेड धरा से जड़ों को बचाने की कोशिश
मैं उखड़ गये कोशिश नाकाम........

सालों से खडे पेडों की मज़बूत जड़ें संबल बन
आपस में लिपटी येक दुसरे का सहारा बन
उभरी वक़्त के तुफानो से
प्यार ही था उनका संबल गुजरा दौर....
सब शांत हुआ।

बार बार तूफान के थपेड़े कर गए जड़ो की
मज़बूत जड़ों को नरम और खोखला

खोखली पकड़ जड़ों की सैलाब के
तूफ़ानी आक्रोश को झेलने को
नाकाम.......

हर वक़्त नहीं होता ऐसा सैलाब, फिर उमड़ा
सालों पुरानी जड़ें कुछ हिली कुछ मुड़ी
कुछ टूटी सेलाब ले चला जो टूटी कमजोर
जड़ों को कुछ रह गई कुछ और शक्ति समेटे

साथ वाले पेड़ों की पकड़ छुटी
तन्हां हो कर हर हाल में साथ छुटा
सैलाब के साथ बह निकला कहीं और
जड़ों को पकड़ देने नई पहचान नया सफर

कहता है आजाद पंछी हर हाल हर साल नया
नहीं बदला तो पर्मात्मा सिर्फ पर्मात्मा

Saturday, 20 January 2018

AK-005 My Theme Song 20th Jan. 2018





This is my childhood song of the year 1956 as Theme, all my up loads will reflect the life on this theme.

Tuesday, 16 January 2018

AK-004 विलुप्त गोरैया


                    विलुप्त गोरैया

सूंदर प्यारी सबसे न्यारी
चूँ चूँ करती घर आंगन में
फुदक फुदक कर दाना चुगती 
प्यारी प्यारी कोमल सी मेरी गोरैया
हाँ तू तो है मेरी राजदुलारी

भूल गए सब भारत वासी
छोटी सी ये राजदुलारी
याद है हमको ये चिरैया
वक्त कीे धुंदली यादें
छीन ले गए हमसे हमारी
प्यारी प्यारी ये गोरैया

किट पतंगे चुन चुन थी खाती
हरियाली खलिहानों की थी
फसलों की थी रखवाली

घर आंगन अपने में चूँ चूँ का
मीठा सा था राग सुनाती
घर की रौनक कहाँ खो गई
मेरी गोरैया कहाँ खो गई

तुम्हारे कोमल तन को
खत्म किया रसायन के विष ने
पथर के बेजान घरों से
नीड तुम्हारे नष्ट हुए थे
तुम्हारी दशा देख दिल रोता है
आज याद कर नमन करने को
दिल करता है

मानवता के क्रूर हाथों से विल्लप्त हुई तुम 
कहता है आज़ाद पंछी जहां रहो
आबाद रहो तुम मेरी प्यारी राजदुलरी

Poet Ashok (Azad Panchi)

Monday, 1 January 2018

AK 003 ज़िन्दगी का कटु सत्य 1 Jan. 2018


चल उड़ जा रे पंछी के अब ये देस हुआ बेगाना

तूने तिनका तिनका चुनकर नगरी एक बसाई
बारिश में तेरी भीगी पाँखें, धूप में गर्मी खाई
गम ना कर जोे तेरी मेहनत तेरे काम ना आई
अच्छा है कुछ ले जाने से दे कर ही कुछ जाना

भुलजा अब वो मस्त हवा, वो उड़ना डाली डाली
जग की आंख का कांटा बन गई चाल तेरी मतवाली
कौन भला उस बाग को पूछे हो ना जिसका माली
तेरी किस्मत में लिखा है, जीतेजी मार जाना

रोते हैं वो पँख पखेरू, साथ तरे जो खेले
जिनके साथ लगाए तूने अरमानों के मेले
भीगी अखियों से ही उन्की आज दुआएं लेले
किस्को पता अब इस नगरी में कब हो तेरा आना

जम्हूरीअत AK-019 20th May 2019 ik

जम्हूरीअत AK-019 20th May 2019 जम्हूरियत का नशा इस कदर हावी हुआ हर सख्स इंसानियत भूलकर हैवानी हुआ इस दौर मैं क्या होगा आगे मत पूछ म...