जल रहा है देश मेरा
भव्य सामारोह गणतंत्र दिवस देश का गौरव
उनहत्तर वर्षों की याद सैकड़ों शहीदों को नमन
याद किया शहीदों के जज्बे को, सलाम सब देशवासियों का माओं को जिन्हों ने जन्म दिया
सपूतों को हंसते हंसते कुर्बान किया बहनों बीबियों ने, खोया दुध पीते अबोध बच्चों ने
भारतीयों को नमन संविधान की रक्षा कर
गौरव देश का बढ़ाया कैसे भूलें हम सारे
उनहत्तर वर्ष बाद भी भारत जल रहा है
विश्व को अपनी नासमझी की मिसाल दे
उत्पात देश मैं व्याप्त कर कौन सी श्रधांजलि
निकृष्ट संकीर्ण सोच का प्रदर्शन दे रहा है
देश हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई भाई भाई
भूल गए हां भूल गए हम सब
देश की संपत्ति का विनाश हो रहा रोज
सोचो क्या यह गणतंत्र है
फिर विचार करना होगा अपने वजुद का
अपने संविधान अपनी ज़िमेदारिओं का
शर्म से झुका शीश देख रहा हर शाहिद
नम आंखों से भारत की दशा निहारता
सोच रहा था क्या हुआ ये आक्रोश कैसा
भारत माँ के सपूतों की कुर्बानी का हश्र
जश्न गणतंत्र दिवस का एक खोखला सा
छोड़ रहा वक्त अपनी अमिट छाप जैसे
समय है सोचने का विचार करो तुम
क्या खोया क्या पाया इन उनहत्तर वर्षों में
केहता है आज़ाद पंछी ना करो शर्मसार
शहीदों को अपने, याद करो उन्हें दे कर
सच्ची श्रद्धांजलि छोड़ सब बैर रहें हम
बन सच्चे अर्थों में भारतवासी।
Poet Ashok (Azad Panchi)