Wednesday, 13 June 2018

मोहब्बत AK-009 14th June 2018

                                                                                                        मोहब्त AK-009 14th June2018

बहारों ने कभी फूलों की मक्कारी नहीं देखी
निभाई हो कभी शूलों ने भी यारी, नहीं देखी

यहाँ छोटी बड़ी हर बात पर तुम रूठ जाते हो
ख़ुदाया हमने तो ऐसी अदाकारी नहीं देखी

हमारी राह में काँटे बिछाने से न कुछ होगा
हमारे इस सफ़र की तुमने तैयारी नहीं देखी

यहाँ अपने पराये में सदा ही भेद रहता है
परिन्दों में कभी हमने ये बीमारी नहीं देखी

अगर उनसे मुहब्बत थी तो खुलकर कह दिया होता
मगर शब्दों की हमने ऐसी ख़ुद्दारी नहीं देखी

'शरद' अब भी ग़ज़ल के साथ इक घर में ही रहता है
कभी लोगों ने उसकी कोई लाचारी नहीं देखी

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