एहसास
AK-014 30th October 2018
टूटा यह दिल तो साक़ी आवाज़ भी न आई
एहसास न हुआ बहार संग पतझड़ है लाई |
बेखबर तूफ़ान से हम घरौंदा बनाते गए
एक ही पल में सपने वो सारे बिखर गए |
बादल जो गरजे हम समझे बरखा आई
पर जाने कब चुपके से घनघोर घटा छाई |
आँखें बिछाए बैठे थे हम हँसी की राह में
अनजान थे कि पड़े हैं दुःख की छाँव में |
काँटे चुनने निकले थे हम तो औरों की राह से
बिछ गए हमारी ही राह में काँटें जाने कहाँ से |
पानी ढूँढ रहे थे साक़ी तपते रेगिस्तान में हम
भूल गए थे यहाँ नज़रों के धोखे नहीं कम |
विश्वास था कर जाएँगे सागर हम पार |
क्या पता था थाम लेगी कदम मझधार |
हौंसला बुलंद कर मंज़िल की तलाश में ‘पूजा’ हम चलते गए
एहसास न हुआ कारवाँ कब निकल गया - निशाँ ही हैं रह गए |
---- पूजा
No comments:
Post a Comment