Zindagi Ek Khawab
Monday, 20 May 2019
Saturday, 5 January 2019
Aasha Deep AK-018 5th January 2019
आशा दीप
AK-018 5th January 2019
आँखों में समन्दर, लिए दिल में तूफ़ान |
क्या सोच रहा है तू, ऐ माटी के इंसान ||
रुकना न फितरत तेरी, माना मुश्किल इम्तिहान |
काँटों पर चलकर ही मिलेगी, तुझे तेरी पहचान ||
पथरीली हों राहें, और हो मुश्किलें तमाम |
आशा दीप जलाता चल, हो न तू परेशान ||
मंज़िल की ओर कदम बढ़ाना, चाहे हो थकान |
सफर आसान बनाने, तेरे साथ चलेंगे भगवान ||
--- पूजा
Wednesday, 14 November 2018
Kehti Hai Kalam AK-017 14th November 2018
कहती है कलम
AK-017 14th November 2018
बुझा-बुझा सा चेहरा लिए तू क्यों आ गया महफ़िल में |
झुलसा रहा तू क्यों सबको अपनी साँसों की गर्मी में ||
सोच रहा तू क्या यूँ अपना मुँह लटकाए |
चट्टानों में नदी अपनी राह स्वयं बनाए ||
मंज़िल की ओर कदम बढ़ा तू सबकुछ प्यारे भूल |
बन वीर कर द्रढ़ संकल्प स्थिति हो चाहे प्रतिकूल ||
कर्म कर तू कर्म कर मौत को अपनी टाल कर |
बन पतंगा मिट जा न जान की तू परवाह कर ||
बेसब्र नादान तू है चार दिन की जिंदगानी यह |
हँसता चल हँसाता चल आनंद-सरिता बन तू बह ||
कहती है यह कलम रुकना मत तू थकना मत तू |
काँटों पर चल कर भी आह तक करना मत तू ||
अपना लक्ष्य, अपनी साधना अधूरी मत छोड़ना तू।
कर्म ही है ‘पूजा’ बस यह बात गाँठ बाँध लेना तू।।
---- पूजा
Thursday, 1 November 2018
मेघयात्री AK-016 1st November 2018
मेघयात्री
AK-016 1st November 2018
रुखी यात्राओं पर निकल रहे हम स्वयं-
पुरवाई हमें मत ढकेलो,
हम प्यासे बादल हैं, इसी व्योम-मंडप के
दे दो ठंडी झकोर
और दाह ले लो।
क्या जाने कब फिर यह बरसाती सांझ मिले,
गठरी में बांध दो फुहारें-
पता नहीं कण्ठ कहां रुंध जाए भीड में,
जेबों में डाल दो मल्हारें,
स्वयं छोड देंगे हम, गुंजित नभ मंच ये-
दे दो एकांत जरा
वाह-वाह ले लो।
हट कर हरियाली से दूर चले जाएंगे-
दूर किसी अनजाने देश में,
जहाँ छूट जाएंगे नीले आकाश कई-
होंगे हम मटमैले वेश में,
मन से तो पूछो, आवेश में न आओ तुम-
दे दो सीमंत गंध
जल-प्रवाह ले लो।
घूम रहे तेज़ समय के पहिए देखो तो-
व्यक्ति और मौसम की बात क्या,
पानी में चली गई वय की यह गेंद तो-
वह भी फिर आएगी हाथ क्या
करो नहीं झूठा प्रतिरोध मत्स्य गंधा! तुम,
होना जो शेष अभी
वह गुनाह ले लो।
Tuesday, 30 October 2018
जीवन का आधार AK-015 29th October 2018
जीवन का आधार
AK-015 29th October 2018
चल पड़े हैं अनजान राहों पर लड़खड़ाते हुए यह कदम |
पा ही लेंगे मंजिल को अब तो गति होगी न कभी कम ||
विश्वास की जलाके मशाल चीरेंगे अंधकार का सीना |
बनेगा कीमती मोती डगर-ऐ-मंज़िल पर टपका पसीना ||
चेहरे पर ले तेज सूर्य का जीतेंगे हर दिल को साक़ी |
हथेली पर जलाकर दीप हम बनाएँगे आशा को बाती ||
अपनाकर काँटों का हार और सुनकर दिल की पुकार |
लिए धधकते शोले आँखों में पार कर लेंगे मझधार ||
मिटकर भी न जो हो फ़ना बनेंगे ऐसी माटी कि मूरत |
पाकर क्षितिज की गरिमा को हम लेंगे जग से इजाज़त ||
अलविदा फूलों की सेज, बिछौना बनाना है पथरीली राह को |
मन में लिए किरण उम्मीद की नमन करना है खुदा को ||
हमसफर बना गीतों को ‘पूजा’ करना है ग़म का सागर पार |
पाना है सपनों का संसार, यही तो है जीवन का आधार ||
----- पूजा
Monday, 29 October 2018
एहसास AK-014 30th October 2018
एहसास
AK-014 30th October 2018
टूटा यह दिल तो साक़ी आवाज़ भी न आई
एहसास न हुआ बहार संग पतझड़ है लाई |
बेखबर तूफ़ान से हम घरौंदा बनाते गए
एक ही पल में सपने वो सारे बिखर गए |
बादल जो गरजे हम समझे बरखा आई
पर जाने कब चुपके से घनघोर घटा छाई |
आँखें बिछाए बैठे थे हम हँसी की राह में
अनजान थे कि पड़े हैं दुःख की छाँव में |
काँटे चुनने निकले थे हम तो औरों की राह से
बिछ गए हमारी ही राह में काँटें जाने कहाँ से |
पानी ढूँढ रहे थे साक़ी तपते रेगिस्तान में हम
भूल गए थे यहाँ नज़रों के धोखे नहीं कम |
विश्वास था कर जाएँगे सागर हम पार |
क्या पता था थाम लेगी कदम मझधार |
हौंसला बुलंद कर मंज़िल की तलाश में ‘पूजा’ हम चलते गए
एहसास न हुआ कारवाँ कब निकल गया - निशाँ ही हैं रह गए |
---- पूजा
Friday, 12 October 2018
जिन्दगी
AK-013 12th October 2018
अंधियारे की गोद में जलता दीपक है ज़िन्दगी |
कभी धरती तो कभी ऊँचा फलक है ज़िन्दगी ||
श्रण-भंगुर पानी का बुलबुला है ज़िन्दगी |
बिखरे अरमानों का ज़लज़ला है ज़िन्दगी ||
नहीं जिसका कोई मरहम वो रिस्ता घाव है ज़िन्दगी |
आज तेज़ धुप तो कल शीतल छाँव है ज़िन्दगी ||
आँखों से छलकता पैमाना है ज़िन्दगी |
दर्दे-दिल छुपाकर मुस्कुराना है ज़िन्दगी ||
पलकों पर सजा हसीन ख्व़ाब है ज़िन्दगी |
बादलों की ओट से झाँकता आफ़ताब है ज़िन्दगी ||
डूबते सूरज की अदभुत दास्ताँ है ज़िन्दगी |
मंजिल की तलाश में बढ़ता कारवाँ है ज़िन्दगी ||
---- पूजा
Friday, 24 August 2018
रह गया सब कुछ AK-012 24th August 2018
रह गया सब कुछ AK-012
24th August 2018
रह गया सब कुछ बिखर कर
इन दिनों है दुख शिखर पर
एक पल में हो गया सब कुछ अधूरा
कुछ हुआ ऐसा कि टूटा तानपूरा
शब्द का संगीत चुप है काँपता हर गीत थर-थर
और ऊपर उठ रही है तेज़ धारा
यह किसी रूठी नदी का है इशारा
द्वीप जैसा हो गया है बाढ़ में घिरता हुआ घर
देखने में नहीं लगता साधुओं सा
दुख शलाका पुरुष-सा है आँसुओं का
रहा आँखों में बहुत दिन आज है लंबे सफ़र पर।
Monday, 25 June 2018
अनमोल AK-011 25th June 2018
अनमोल क्षण AK-011 25th June 2018
अनमोल क्षण ! !
पुराने दिन ! !
काश लौट कर आ जाते ! !
खूबसूरत यादों की तरह
फिर से दिन और
महीनों की तरह ! !
फिर से चाँद और
सूरज की तरह ! !
मगर मालूम है मुझे ,
अब न लौटेंगे कभी
वो पुराने दिन दोबारा ! !
हाँ यादें हैं बेशकीमती
मुझमें नस और नाड़ियों
की तरह ! !
सम्भाल कर रखी है मैंने ,
यादों के दिये कुछ इस तरह ! !
बिलकुल हृदय की देहरी पर ! !
कभी कभार दोस्तों की
खूबसूरत लाड़ - प्यार के
दिये से रौशन हो जाता है
अंदर और बाहर ! !
कल ही देखा गुलाबों की
खूबसूरत पन्खुडियों को ! !
पुरानी किताब के पन्नों पर ! !
उसे देखते ही दोनों
खिलखिला उठे ! !
आहा ! !
वो अनमोल क्षण ! !
वो पुराने दिन ! !
Friday, 15 June 2018
तूफान AK-010 15th June 2018
तूफान
AK-010 15th June 2018
अकेले पेड़ों का तूफ़ान
फिर तेजी से तूफ़ान का झोंका आया
और सड़क के किनारे खड़े
सिर्फ एक पेड़ को हिला गया
शेष पेड़ गुमसुम देखते रहे
उनमें कोई हरकत नहीं हुई।
जब एक पेड़ झूम-झूम कर निढाल हो गया
पत्तियाँ गिर गयीं
टहनियाँ टूट गयीं
तना ऐंचा हो गया
तब हवा आगे बढ़ी
उसने सड़क के किनारे दूसरे पेड़ को हिलाया
शेष पेड़ गुमसुम देखते रहे
उनमें कोई हरकत नहीं हुई।
इस नगर में
लोग या तो पागलों की तरह
उत्तेजित होते हैं
या दुबक कर गुमसुम हो जाते हैं।
जब वे गुमसुम होते हैं
तब अकेले होते हैं
लेकिन जब उत्तेजित होते हैं
तब और भी अकेले हो जाते हैं।
Wednesday, 13 June 2018
मोहब्बत AK-009 14th June 2018
मोहब्त AK-009 14th June2018
बहारों ने कभी फूलों की मक्कारी नहीं देखी
निभाई हो कभी शूलों ने भी यारी, नहीं देखी
यहाँ छोटी बड़ी हर बात पर तुम रूठ जाते हो
ख़ुदाया हमने तो ऐसी अदाकारी नहीं देखी
हमारी राह में काँटे बिछाने से न कुछ होगा
हमारे इस सफ़र की तुमने तैयारी नहीं देखी
यहाँ अपने पराये में सदा ही भेद रहता है
परिन्दों में कभी हमने ये बीमारी नहीं देखी
अगर उनसे मुहब्बत थी तो खुलकर कह दिया होता
मगर शब्दों की हमने ऐसी ख़ुद्दारी नहीं देखी
'शरद' अब भी ग़ज़ल के साथ इक घर में ही रहता है
कभी लोगों ने उसकी कोई लाचारी नहीं देखी
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